Madhubala - The Matchless Beauty

Madhubala - The Matchless Beauty

Sunday, January 17, 2010

मधुबाला को भी मिली थी इश्क में मायूसी


मधुबाला को भी मिली थी इश्क में मायूसी
नई दिल्ली, एजेंसी
First Published:07-09-09 12:11 PM
Last Updated:07-09-09 12:15 PM
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बेमिसाल हुस्न की मलिका मधुबाला से शादी का प्रस्ताव मिलने पर ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति होता, जो उसे ठुकराने का ख्याल तक अपने दिल में ला पाता लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में एक शख्स ऐसा भी था जिसने इस मशहूर अदाकारा से मिले विवाह प्रस्ताव को काफी सोच, विचार के बाद ठुकराने का हौसला दिखाया था। वह शख्स थे संगीतकार एस मोहिन्दर।

एस मोहिन्दर के नाम से आज की पीढी़ शायद ही परिचित हो। उन्होंने 1940 से 1960 के दशक में कुछ चुनींदा फिल्मों में बेहतरीन संगीत दिया था और कैरियर के शिखर पर वह अमेरिका में बस गए थे। 'शीरीं फरहाद' फिल्म में उनके स्वरबद्ध गीत काफी लोकप्रिय हुए थे। इनमें लता मंगेशकर का गाया और मधुबाला पर फिल्माया गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा हाफिज खुदा तुम्हारा सदाबहार गीतों में शामिल है।

कनाडा के टोरंटो की एक लेखिका इकबाल सिंह महाल ने अपनी पंजाबी पुस्तक 'सुरों दे सौदागर' में अभिनेत्री मधुबाला से एस मोहिन्दर को मिले विवाह प्रस्ताव की घटना का जिक्र किया है। मधुबाला ने लंबे-ऊंचे कद के खूबसूरत एस मोहिन्दर के सामने शादी का प्रस्ताव रखा था जबकि वह अच्छी तरह से जानती थीं कि एस मोहिन्दर का सुखमय वैवाहिक जीवन है और उनके बच्चे भी हैं।

मधुबाला ने उनकी पत्नी के गुजारे और उनके बच्चों की पढा़ई-लिखाई के लिए हर महीने आर्थिक सहायता के रूप में भारी-भरकम रकम देने की पेशकश भी की थी। एस मोहिन्दर मधुबाला से मिले विवाह प्रस्ताव को एकदम नहीं ठुकरा पाऐ। वह कई दिन तक इस पर विचार करते रहे और आखिरकार अपनी जिन्दगी का सबसे अहम फैसला करते हुए उन्होंने मधुबाला से 'नहीं' कहने की हिम्मत जुटा ही ली।

एस मोहिन्दर का जन्म अविभाजित पंजाब में मोंटगोमरी जिले के सिलनवाला गांव में 08 सितम्बर 1925 को एक सिख परिवार में हुआ। चौरासी वर्षीय एस मोहिन्दर मूल नाम मोहिन्दर सिंह सरना है। कुछ लोग उन्हें मोहिन्दर सिंह बख्शी के नाम से भी बुलाते हैं। एस मोहिन्दर के पिता सुजान सिंह बख्शी पुलिस में सब इंस्पेक्टर थे, जिनका तबादला होता रहता था। उनके पिता बांसुरी बहुत अच्छी बजाते थे। इस तरह संगीत के कुछ अंश उन्हें अपने पिता से विरासत में ही मिले थे।

एस मोहिन्दर के पिता का तबादला बडे़ शहर लायलपुर में हुआ तो उनका परिवार वहां चला गया। लगभग 1935 की बात है, दस वर्षीय एस मोहिन्दर सिख धार्मिक गायक संत सुजान सिंह के सम्पर्क में आए और कई साल तक उनके शिष्य बनकर शास्त्रीय संगीत की शिक्षा हासिल करते रहे। इसके बाद उनका परिवार गुरु नानक के जन्मस्थान ननकाना साहिब के समीप शेखूपुरा चला गया, जहां उन्होंने सिख मजहब के एक बडे़ संगीतज्ञ भाई समुंद सिंह से शास्त्रीय संगीत की तालीम ली। एस मोहिन्दर ने दिग्गज शास्त्रीय गायक बडे़ गुलाम अली खां और लक्ष्मण दास से भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण की थी।

पिता के लगातार तबादलों के कारण एस मोहिन्दर की शिक्षा काफी प्रभावित होने पर चालीस के दशक के प्रारंभ में उनका दाखिला अमृतसर जिले के कैरों गांव में खालसा हाई स्कूल में करा दिया गया। 1947 में देश का विभाजन होने पर उनका परिवार तो भारत में पूर्वी पंजाब चला गया लेकिन शास्त्रीय संगीत के लिए बाईस वर्षीय एस मोहिन्दर का प्रेम उन्हें बनारस खींच ले गया, जहां दो साल तक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा को निखारने के बाद उन्होंने मुम्बई का रुख किया।

एस मोहिन्दर प्रारंभ में गायक बनना चाहते थे और कुछ वर्ष तक लाहौर रेडियो स्टेशन से भी गायक के रूप में जुडे़ रहे थे। उसी दौरान एक बार उनकी मुलाकात प्रसिद्ध अभिनेत्री, गायिका सुरैया से हुई। जिन्होंने उनके गायन की तारीफ करते हुए कभी मुम्बई आने पर उनसे मिलने को कहा। मुम्बई में दादर रोड़ पर अचानक उनकी मुलाकात उस जमाने के मशहूर संगीतकार खेमचंद प्रकाश हो गई। जिन्होंने 'सेहरा' (1948) के लिए बतौर संगीतकार उनके नाम की सिफारिश की। यह संगीतकार के रूप में उनकी पहली हिन्दी फिल्म थी और इसमें उन्होंने एक गीत भी गाया था, ऐ दिल उडा के ले चल। फिल्म का निर्माण गोविंदा के माता-पिता निर्मला देवी और अरुण कुमार ने किया था और नायिका और नायक भी वही थे।

एस मोहिन्दर को पहला बडा़ ब्रेक रंजीत मूवीटोन की फिल्म 'नीली' से मिला। 1950 में बनी इस फिल्म के निर्माता चंदूलाल शाह थे और देव आनन्द और सुरैया नायक, नायिका थे। एस मोहिन्दर को यह फिल्म मिलने का किस्सा भी बडा़ दिलचस्प है। निर्माता चंदूलाल शाह ने एस मोहिन्दर से कहा कि वह अपनी फिल्म के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे हैं और इस बारे में सुरैया का फैसला अंतिम होगा। यह सुनकर एस मोहिन्दर ने निर्माता से यह नहीं बताया कि वह सुरैया को अच्छी तरह जानते हैं और सीधे उनके पास जाकर पूरी स्थिति उन्हें बताई। सुरैया ने उनसे मदद का वादा किया लेकिन कहा कि वह निर्माता को यह नहीं बताएं कि वह उनसे पहले ही लौहार में मिल चुके हैं। उन्होंने कहा, मैं तुम्हें बुलवाऊंगी जरूर मुझे गाना सुनाना लेकिन मेरी तरफ देखना नहीं आंख न मिलाना मुझसे कि पता न चले कि तुम्हें मैं जानती हूं।

स्टूडियो में सुरैया ने एस मोहिन्दर से गाने सुनने का दिखावा करते हुए संगीतकार के रूप में उनके नाम का अनुमोदन कर दिया। इस फिल्म के लिए एस मोहिन्दर ने सात हजार रुपए लिए थे। फिल्म में नौ में से सात गाने सुरैया ने गाए थे। इनमें चोरी चोरी आना ओ राजा मोरे दिल के और फूल खिले हैं गुलशन गुलशन में तू भी ले जैसे गीतों से उन्होंने फिल्म जगत को अपनी प्रतिभा से परिचित कराया।

एस मोहिन्दर की अगली दो बडी़ फिल्में पापी-1953 और शीरीं फरहाद-1956 थीं। चंदूलाल शाह निर्देशित पापी के निर्माण के समय तक मुकेश राजकपूर की आवाज बन चुके थे लेकिन इस फिल्म में एस मोहिन्दर ने राजकपूर के लिए मोहम्मद रफी की आवाज का इस्तेमाल किया। रफी की माहौल पर छा जाने वाली गंभीर आवाज में स्वरों के ऊंचे उठान के साथ गाया गाना तेरा काम है जलना परवाने चाहे शमां जले या न जले बेहद लोकप्रिय हुआ। हालांकि परदे पर राजकपूर ने चार्ली चैपलिन की शैली में अभिनय करके गीत में व्यक्त गंभीर भावों में हल्कापन ला दिया था लेकिन इससे गीत की प्रभावोत्पादकता में किसी तरह की कमी नहीं आई।

दर्शकों ने पापी को सिरे से नकार दिया लेकिन इस गीत को बेहद सराहना मिली। परदे पर जैसे ही यह गीत आता था, उनके कदम खुद-ब-खुद उसके साथ ताल मिलाने लगते थे। यह भी रोचक तथ्य है कि निर्माता ने शुरु में गीत को असंतुष्ट होकर ठुकरा दिया था लेकिन बाद में शूटिंग पूरी होने पर फिल्म की लंबाई बढा़ने के लिए इसे शामिल किया था।

मेरी जिन्दगी है तू तुझको मेरी जुस्तजू आशा-रफी तथा अभी-अभी बहार थी, ऐ जज्ब-ए-मुहब्बत इतना असर दिखा दे, न पहलू में दिल है और कौन कहे उनको जा के ऐ हजूर में भी बेहद कर्णप्रिय संगीत था। पापी से ही जुडा़ एक और प्रसंग है। एस मोहिन्दर को अनारकली के संगीतकार के रूप में अनुबंधित किया गया था। इसके लिए उन्होंने दो गीत भी रिकार्ड कर लिए थे लेकिन निर्माता को गीत जब पसंद नहीं आए तो उन्होंने उन गीतों को पापी में शामिल कर लिया। बाद में निर्माता ने उन गीतों की मांग की। अब एस मोहिन्दर को यह फैसला करना था कि दोनों फिल्म निर्माताओं में किसे नाराज करें। उस समय तक लगभग अनजान बीना राय प्रदीप कुमार के बजाय राज-नरगिस की लोकप्रिय जोडी़ वाली पापी को चुनना उन्हें ज्यादा व्यावहारिक लगा लेकिन इस फैसले से अनारकली उनके हाथ से निकल गई और चोटी पर पहुंचने का मौका भी उन्होंने गंवा दिया।

एस मोहिन्दर के मधुबाला के पिता से दोस्ताना और उनके परिवार से घरेलू ताल्लुकात थे। मधुबाला प्रोडक्शन में बनी फिल्म नाता में उन्हें संगीतकार चुने जाने से पता चलता है कि उनके और मधुबाला के पिता के बीच किस कदर दोस्ती थी। एस मोहिन्दर ने ही मधुबाला के पिता और शीरीं फरहाद के निर्माता के बीच पैसे के लेन-देन के विवाद को सुलझाने और एक बंगाली हीरोइन की जगह मधुबाला को यह फिल्म दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।

शीरीं फरहाद में एस मोहिन्दर के स्वरबद्ध नौ गीत थे जिन्हें तनवीर नकवी ने लिखा था। फिल्म के सभी गीत अपने जमाने में बेहद मकबूल हुए थे गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा, हाफिज खुदा तुम्हारा के अलावा हजारों रंग बदलेगा जमाना-न बदलेगा मुहब्बत का फसाना (रफी) सुनाऊं किसको अफसाना न अपना है न बेगाना (तलत महमूद) और रफी और साथियों की आवाज में आखों में तुम्हारे जलवे हैं होठों पे तुम्हारे अफसाने कव्वाली को दर्शकों और श्रोताओं ने काफी सराहा था। शीरीं फरहाद की उपलब्धि हेमंत कुमार के तीन सुरीले युगल गीत भी थे। उनके लता के साथ गाए गीत आ जा ओ जाने वफा और आशा के साथ गाए गीतों ऐ दिलरुबा, जाने वफा, तूने ए क्या जादू किया तथा खुशियों को लूटकर यहां देते हैं गम निशानियां को क्लासिक की श्रेणी में रखा जा सकता है।

शीरीं फरहाद से जुडे़ कुछ रोचक प्रसंग हैं। मधुबाला फिल्म के संगीत से इस कदर प्रभावित हुई थीं कि उन्होंने अपनी व्यस्त शूटिंग के बाद एस मोहिन्दर के घर जाकर उत्कृष्ट संगीत रचनाओं के लिए उनका आभार व्यक्त किया था। एस मोहिन्दर ने गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा गीत में कुछ जगहों पर ऊंचे स्वर रखे थे, जिस पर लता मंगेशकर को एतराज था लेकिन उन्होंने यह कहकर उन्हें शांत कर दिया कि मैंने लता को बुलाया है किसी और को नहीं। फिल्म के एक युगल गीत में हेमंत कुमार को उन्होंने अभिनेता प्रदीप कुमार के कहने पर लिया था।

एस मोहिन्दर गायक-गायिकाओं में मोहम्मद रफी और तलत महमूद तथा आशा भोंसले के बडे़ प्रशंसक थे। वह बताते हैं कि आशा और रफी आखिर तक उनके पसंदीदा गायक-गायिका रहे थे। तलत महमूद की सराहना करते हुए वह नहीं थकते हैं। उनका कहना है कि रफी की शैली का तो कई गायकों ने अनुकरण करने की कोशिश की लेकिन तलत महमूद की नकल करने की कोशिश भी कोई नहीं कर सकता।

एस मोहिन्दर ने हिन्दी फिल्मों के अलावा कुछ पंजाबी फिल्मों और अलबमों के लिए भी श्रुतिमधुर संगीत दिया। वह बताते हैं कि साठ के दशक में शादरूल क्वात्रा और हंसराज ही रह गए थे, जो पंजाबी फिल्मों में संगीत दिया करते थे। उस स्थिति में उन्होंने भी पंजाबी फिल्मों में खुद को आजमाने की कोशिश की लेकिन तथ्य यह भी है कि वह रिपोर्टर राजू-1962, कैप्टन शेरू-1963, सरफरोश-1964, प्रोफसर एक्स-1966 और सुनहरे कदम-1966 जैसी स्टंट या छोटी फिल्मों से उकता गए थे और यह समझने लगे थे कि सुरीले गीतों का स्थान लेते जा रहे शोरशराबे वाले संगीत में उनके लिए स्थान नहीं रह गया है। संगीतकार के रूप में उनकी पहली पंजाबी फिल्म परदेसी ढोला थी जो कामयाब रही। इसके बाद उन्होंने पंजाबी फिल्मों में संगीत देने पर अपना पूरा ध्यान लगा दिया।

लच्छी फिल्म में एस मोहिन्दर ने बेहद सुरीला संगीत दिया। इस फिल्म के गाने काफी लोकप्रिय रहे। लता मंगेशकर से उन्होंने इस फिल्म के लिए नाले लम्बी वे नाले काली हाथ वे चन्ना रात जुदायां वाली गीत गवाया जो इस कदर लोकप्रिय हुआ कि यशपाल ने अपने मशहूर उपन्यास झूठा सच में एक लड़की द्वारा यह गीत गुनगुनाने का वर्णन किया था।

एस मोहिन्दर की अन्य पंजाबी फिल्मों दाज नानक नाम जहाज 1969, दुखभंजन तेरा नाम-1974, चंबे दी कली, मन जीते जग जीत-1973, पापी तारे अनेक और मौला जट्ट, ने भी खूब धूम मचाई। नानक नाम जहाज से वह संगीत के उस मुकाम पर पहुंच गए जहां उन्हें संगीत के लिए 1970 का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। उनका मानना है कि 'मुगले आजम' के लिए जो काम बडे़ गुलाम अली खां के गायन ने किया था, वही काम भाई समुंद सिंह ने 'नानक नाम जहाज' के लिए किया। इस फिल्म में उनके गाए शबदों की तुलना नहीं हो सकती।

नानक नाम जहाज फिल्म की जबरदस्त कामयाबी के साथ देश में सिख धर्म की कहानियों पर आधारित सार्थक फिल्में बनाने का दौर शुरु हुआ। दे शिवा वर मोहे-महेन्द्र कपूर, मेरे साहिब और रे मन ऐसो कर-आशा, हम मैले तुम उज्जल करते-मन्नाडे, कल तारन गुरु नानक आया-भाई समुंद सिंह रागी जैसे शबद बेहद सराहे गए।

एस मोहिन्दर ने नब्बे के दशक में कुछ प्राइवेट अलबमों के लिए भी संगीत दिया, जिनमें कुछ भक्ति संगीत और कुछ पंजाबी लोकसंगीत पर आधारित थे। इन अलबमों में पंजाब की सुप्रसिद्ध गायिका सुरेन्दर कौर ने मुख्य रूप से गाने गाए। आशा भोसले की आवाज में उनके शबदों का एक अलबम 'मास्टरपीस' है। अमेरिका में भी उन्होंने भक्ति गीत और रोमांटिक गीतों के कुछ अलबम निकाले।

एस मोहिन्दर के गैर फिल्मी शबद, रफी की आवाज में, हर का नाम सदा सुखदाई और आशा भोसले की आवाज में मितर प्यारे नूं, थिर थिर बैसो, भी खूब लोकप्रिय रहे। बाबा फरीदुद्दीन गज-ए-शकर के सूफियाना कलाम को लेकर जगजीत सिंह, नीलम साहनी आदि के स्वरों में उनकी स्वरबद्ध धुनों एक अलबम भी चर्चित रहा।

एस मोहिन्दर ने जिन हिन्दी फिल्मों में संगीत दिया उनमें प्रमुख हैं: जीवन साथी 1949, शादी की रात 1950, श्रीमती जी 1952ए वीर अर्जुन 1952, बहादुर 1953, सौ का नोट 1955, शाहजादा 1955, कारवां 1956, सुल्तान ए आजम 1956, पाताल परी 1957, नया पैसा 1958, सुन तो ले हसीना 1958, भगवान और शैतान 1959, खूबसूरत धोखा 1959, दो दोस्त 1960, महलों के ख्वाब 1960, जमीन के तारे 1960, एक लड़की सात लड़के 1961, जय भवानी 1961, बांके सांवरिया 1962, जराक खान 1963, बेखबर 1960, पिकनिक 1966, दहेज 1981 और संदली 1986।

मधुबाला पर यह फीचर दैनिक हिन्‍दुस्‍तान में प्रकाशित हो चुका है।

मधुबाला की जीवनी का लोकार्पण


मधुबाला की जीवनी का लोकार्पण

24 दिसंबर, 2009
नई दिल्ली। भारतीय सिने जगत में अप्रतिम सौदर्य और सशक्त अभिनय के लिए पहचानी जाने वाली अभिनेत्री मधुबाला की जीवनी का कल यहां लोकार्पण किया गया। मधुबाला दर्द का सफर जीवनी का लोकार्पण कल शाम यहां फिल्म डिवीजन के सभागार में आयोजित किया गया। इस मौके पर सांसद राशिद अल्वी ने कहा कि राजनेताओं कर प्रसिद्धी का दौर काफी छोटा होता है। लेकिन कलाकारों एवं कलमकारों की लोकप्रियता कालखंड से पैर होती है। उन्होने कहा कि मधुबाला जैसे कलाकार को भले ही उनके जीवन में उचित सम्मान न दिया गया हो, लेकिन वह सदियों तक लोगों के दिलों पर राज करती रहेगी। पुस्तक की लेखिका सुशीला ने कहा कि मुधबाला अपली जिंदगी में खुशियों और प्यार से कोसो दूर रही ।
उन्हे दुख, तन्हाई और तिरस्कार के सिवा कुछ नही मिला। उनका हंसता हुआ चेहरा देखकर शायद ही आभास हो कि इसके पीछे कितना भयानक दर्द छिपा था। गौरतलब है कि मुगल ए आजम, महल, हाफ टिकट, चलती का नाम गाडी और हावडा ब्रिज जैसी फिल्मों में अभिनय और सौदर्य का जलवा बिखरने वाली मधुबाला का मात्र 36 साल की उम्र में निधन हो गया था।
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मधुबाला की जीवनी का लोकार्पण

भारतीय सिने जगत में अप्रतिम सौंदर्य और सशक्त अभिनय के लिए पहचानी जाने वाली अभिनेत्री मधुबाला की जीवनी का लोकार्पण किया गया।

‘मधुबाला..दर्द का सफर’जीवनी का लोकार्पण फिल्म डिवीजन स्थित सभागार में आयोजित किया गया।

इस मौके पर सांसद राशिद अल्वी ने कहा कि राजनेताओं की प्रसिद्धी का दौर काफी छोटा होता है, लेकिन कलाकारों एवं कलमकारों की लोकप्रियता कालखंड से परे होती है।

उन्होंने कहा कि मधुबाला जैसे कलाकार को भले ही उनके जीवन में उचित सम्मान न दिया गया हो, लेकिन वह सदियों तक लोगों के दिलों पर राज करती रहेंगी।

इस मौके पर पुस्तक की लेखिका सुशीला कुमारी ने कहा कि मधुबाला अपनी जिंदगी में खुशियों और प्यार से कोसों दूर रही। उन्हें दुख, तन्हाई और तिरस्कार के सिवा कुछ नहीं मिला। उनका हंसता हुआ चेहरा देखकर शायद ही आभास हो कि इसके पीछे कितना भयानक दर्द छिपा था।

गौरतलब है कि मुगल-ए-आजम,महल, हाफ टिकट, फागुन, चलती का नाम गाड़ी और हावड़ा ब्रिज जैसी फिल्मों में अभिनय और सौंदर्य का जलवा बिखेरने वाली मधुबाला का मात्र 36 साल की उम्र में निधन हो गया था।

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दर्द से भरा था 'सौंदर्य की मल्लिका 'का जीवन

दर्द से भरा था 'सौंदर्य की मल्लिका 'का जीवन
नई दिल्ली, एजेंसी
पूरब की वीनस कहलाने वाली सौंदर्य की मल्लिका ने भारतीय सिनेमा जगत पर न केवल अपने सौंदर्य का बल्कि अपने अभिनय की गहरी छाप छोड़ी। लेकिन न तो उन्हें जीते जी और न ही उनके निधन के बाद वह सम्मान दिया गया जिसकी वह हकदार थी। यह विचार मधुबाला की जीवनी 'मधुबाला-दर्द का सफर' के लोकार्पण के मौके पर व्यक्त किया गया।

पुस्तक की लेखिका सुशीला कुमारी ने बुधवार देर शाम फिल्म डिविजन के सभागार में आयोजित समारोह में कहा कि मधुबाला को भारतीय सिनेमा का आइकन माना जाता है। लेकिन मधुबाला को अपने जीवन में कोई पुरस्कार या सम्मान नहीं मिला।हालांकि भारतीय सिनेमा की सबसे महत्वपूर्ण फिल्म मुगले आजम को मधुबाला के अविस्मरणीय अभिनय के लिए भी याद किया जाता है। लेकिन उसे फिल्म के लिए भी मधुबाला को कोई सम्मान नहीं मिला।

लोकसभा सांसद राशिद अल्वी, फिल्म प्रभाग के निदेशक कुलदीप सिंह, दूरदर्शन के पूर्व निदेशक शरद दत्त, डा.मुकेश गर्ग, संगीत निर्देशक हुस्नलाल की सुपुत्री एवं गायिका प्रियम्बदा वशिष्ट और सखा संगठन के अध्यक्ष अमरजीत सिंह कोहली उपस्थित थे। अल्वी ने मधुबाला की जीवनी के सामने लाने के प्रयास को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि कलाकारों की लोकप्रियता काल खंड से परे होती है। मधुबाला जैसे कलाकार पुरस्कारों से वंचित रहने के बाद भी सदियों तक लोगों के दिलों पर राज करते हैं।

मधुबाला की विस्मयकारी सुंदरता और उनकी बेइंतहा लोकप्रियता, चेहरे से हरदम टपकती नटखट मुस्कान और शोखी को देखकर कोई भी सोच सकता है कि उनकी दुनिया बहुत खुबसूरत होगी। लेकिन उनकी जिंदगी खुशियों और प्यार से कोसों दूर थीं जिन्हें पाने के लिए उन्होंने मरते दम तक कोशिश की। लेकिन दुख, तन्हाई और तिरस्कार के सिवा कुछ नहीं मिला।

श्रीमती वशिष्ट ने कहा कि मधुबालाके समय की तुलना में आज का समाज बहुत बदल गया है। लेकिन आज भी मधुबाला की तरह बनना औरदिखना ज्यादातर लड़कियों का सपना रहता है। इस पुस्तक में मधुबाला के जीवन से जुड़े अनजाने पहलुओं की जानकारी मिलेगी।

गौरतलब है कि मुगले आजम, महल, हाफ टिकट, अमर, फागुन, चलती का नाम गाड़ी और हावड़ा ब्रिज जैसी अनेक फिल्मों में अपने सौंदर्य और अभिनय का जलवा बिखेरने वाली मधुबाला ने महज 36साल की उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह दिया।

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Saturday, January 16, 2010

Delhi commemorated Mohd. Rafi in a big way

New Delhi, December 24, 2009. Decades have passed since the death of legendary singer Mohammed Rafi, but his memories are still fresh in the mind of millions of his fans. On the eve of his 85th birthday a number of his fans and music lovers gathered yesterday to remember their favourite singer at Film Division Auditorium.
On this occasion a short film on the life of and songs of legendary singer was screened. This film, titled Rafi-Tum Bahut Yaad Aaye, has been produced by the Films Division.
The biography on the life of yesteryears' Bollywood beauty and Mohammad Rafi's contemporary Madhubala (Madhubala : Dard ka Safar) was also released on the occasion by Sh Rashid Alvi (MP). This is the first biography of Madhubala in Hindi and is written by prestigious Bhartendu Harishchandra Award winner Mrs. Sushila Kumari. This book is published by Sachi Prakashan. “Madhubala is generally remembered for her matchless beauty and seductive smile, but very few people know that her life was full of pain and struggle, said Mrs. Sushila Kumari.
On this occassion Mr. Kuldeep Sinha, the Producer and Director of the Film said that making of a film on Mohammad Rafi is like an old dream come true. He had been thinking about making a film on Rafi Sahab, since the death of Mohammad Rafi in 1980. He had actually discussed with Great Music Director Naushad about his dream project and he had promised to give full cooperation but due to some unavoidable reasons he could not make this film at that time.
A seminar on the songs and different aspects of the singer's life was also organised. Speaking on the occasion Mr. Amarjit Singh Kohli, Chairman of Sakha and Yaadgar- E- Rafi, said that Rafi due to his versatility has the greatest fan following amongst young upcoming singers. The possibility of training young singers through a course of Rafi’s songs (classical, light & other shades)selected by music researchers, could be seriously explored. Former Director of Doordarshan Sharad Dutt said that genius of Rafi can be gauged from the fact that Shanker Jaikishan used Rafi’s voice in song “Ajab Hai Dastaan Teri Ai Zindgi” (film Shararat) which was picturised on singing hero Kishore Kumar. Music Expert Dr. Mukesh Garg said that Rafi’s popularity is increasing with time & he has defied age. Singer Priyamvada Vashisht, daughter of music director Husan Lal (of Husan Lal-Bhagat Ram fame) said that Rafi’s range was matchless. She said Rafi’s song “Suno suno ai duniya walo, bapu ji ki amar kahani” composed by her father Husan Lal after the death of Mahatma Gandhi, had become a rage in those times. Sh Manpreet Singh Badal, finance minister, Punjab, in a message to Society said “I am a great fan of Rafi Sahib for he epitomized the human excellence in the field of music blended with finest qualities of man”.
Writer and Journalist, Vinod Viplav, author of the first biography of Mohammad Rafi Meri Awaz Suno said that the contributions of Mohammad Rafi have been neglected on various levels. People usually remember him as the best singer or the best man while he is more than that – he is the symbol of communal harmony, secularism and national integration and he must be remembered in this form.
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For more information & for photographs, please contact:
Phone - 9868793203/9868914801

खूबसूरत अभिनेत्री मधुबाला की ‘जीवनी’ लोकार्पित



खूबसूरत अभिनेत्री मधुबाला की ‘जीवनी’ लोकार्पित
24 दिसंबर 2009
वार्ता
नई दिल्ली। ‘पूरब की वीनस’ कहलानेवाली अप्रतिम सौंदर्य की मल्लिका ने भारतीय सिनेमा जगत पर न केवल अपने सौंदर्य का, बल्कि अपने अभिनय का भी जादू डाल रखा है। लेकिन न तो उन्हें जीते जी और न ही उनकी मौत के बाद वह सम्मान दिया गया, जिसकी वे हकदार थीं।

यह उद्गार मधुबाला की जीवनी ‘मधुबाला- दर्द का सफर’ के लोकार्पण के मौके पर व्यक्त किया गया। पुस्तक की लेखिका सुशीला कुमारी ने कल देर शाम यहां फिल्म डिविजन के सभागार में आयोजित समारोह में कहा कि हालांकि मधुबाला को भारतीय सिनेमा का आइकन माना जाता है लेकिन मधुबाला को अपने जीवन में कोई पुरस्कार या सम्मान नहीं मिला। हालांकि भारतीय सिनेमा की सबसे उल्लेखनीय एवं महत्वपूर्ण फिल्म ‘मुगले आजम’ को मधुबाला के अविस्मरणीय अभिनय के लिए भी याद किया जाता है, लेकिन उस फिल्म के लिए भी मधुबाला को कोई सम्मान नहीं मिला।

इस मौके पर लोकसभा सांसद राशिद अल्वी, फिल्म प्रभाग के निदेशक एवं सुप्रसिद्ध वृत्तचित्र निर्माता कुलदीप सिंह, दूरदर्शन के पूर्व निदेशक एवं फिल्म शोधकर्ता शरद दत्त, संगीत विशेषज्ञ डॉ. मुकेश गर्ग, बीते जमाने के मशहूर संगीत निर्देशक हुस्नलाल की सुपुत्री एवं गायिका प्रियम्बदा वरिष्ठ तथा सखा संगठन के अध्यक्ष अमरजीत सिंह कोहली उपस्थित थे ।

श्री अल्वी ने मधुबाला की जीवनी को सामने लाने के प्रयास को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि राजनेताओं एवं शासकों की प्रसिद्धि का दौर बहुत छोटा होता है, लेकिन कलाकारों एवं कलमकारों की लोकप्रियता काल खंड से परे होता है। मधुबाला जैसे कलाकार पुरस्कारों से वंचित रहने के बाद भी सदियों तक लोगों के दिलों पर राज करते हैं।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार से सम्मानित लेखिका ने कहा कि मधुबाला की विस्मयकारी सुंदरता और उनकी बेइंतहा लोकप्रियता, उनके चेहरे से हरदम टपकती नटखट मुस्कराहट और शोखी को देखकर कोई भी सोच सकता है कि उनकी दुनिया बहुत खुबसूरत होगी। लेकिन सच्चाई यह है कि उनकी जिंदगी खुशियों और प्यार से कोसों दूर थी, जिन्हें पाने के लिए उन्होंने मरते दम तक कोशिश की। लेकिन उन्हें दुख, तन्हाई और तिरस्कार के सिवा कुछ नहीं मिला। मधुबाला का हमेशा हंसता हुआ चेहरा देखकर शायद ही किसी को आभास हो पाए कि इस हंसी के पीछे भयानक दर्द छिपा था।

श्रीमती वशिष्ठ ने कहा कि मधुबाला के समय की तुलना में आज का समाज बहुत बदल गया है, लेकिन आज भी मधुबाला की तरह बनना और दिखना ज्यादातर लड़कियों का सपना रहता है। अत्यंत निर्धन परिवार में जन्मी और पली-बढ़ी मधुबाला ने लोकप्रियता का जो शिखर हासिल किया वह विलक्षण है। लेकिन इतना होने के बावजूद मधुबाला के जीवन के ज्यादातर पहलुओं से लोग अनजान हैं। लेकिन इस पुस्तक में मधुबाला से जुड़े अनजाने पहलुओं की जानकारी मिलेगी।

गौरतलब है कि ‘मुगले आजम’, ‘महल’, ‘हाफ टिकट’, ‘अमर’, ‘फागुन’, ‘चलती का नाम गाड़ी’ और ‘हावड़ा ब्रिज’ जैसी अनेक फिल्मों में अपने सौंदर्य और अभिनय का जलवा बिखेरनेवाली मधुबाला ने महज 36 साल की उम्र में ही दुनिया को अलवदिा कह दिया। मधुबाला बचपन से ही दिल में छेद की बीमारी से जूझती रहीं और इसी बीमारी के कारण अत्यंत कष्टप्रद स्थितियों में उनका निधन हो गया। हालांकि आज इस बीमारी का इलाज आसानी से होने लगा है। मधुबाला ने जीवन भर कष्टों एवं दर्द को सहते हुए जिस जिंदादिली के साथ वास्तविक जीवन एवं सिनेमा के जीवन को जिया वह बेमिसाल है।

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Documentary on legendary singer Rafi screened

Documentary on legendary singer Rafi screened

New Delhi, Dec 23 : It was a trip down memory lane for several music lovers in the Capital city today as they remembered legendary Bollywood singer Mohammad Rafi on the eve of his 85th anniversary tomorrow.

On the eve of Rafi's 85th birth anniversary, a documentary on the life of the singer was screened at the Films Division auditorium here.

Titled 'Rafi-Tum Yaad Aaye', the documentary, produced by the Films Division, was screened to a hall filled with Rafi's fans and music lovers.

The film, directed by the chief filmmaker in the Films Division Kuldip Sinha, was also screened at last month's International Film Festival of India in Goa.

Also organised on the occasion was a seminar on the songs and different aspects of the life of Mohammad Rafi where the wife of yesteryears' filmmaker Husnalal, Nirmala Husnalal, former Director of Doordarshan Sharad Dutt, music expert Mukesh Garg, singer Priyamvada Vashisht and several music and film experts participated.

Addressing the occasion, Kuldip Sinha, the producer and director of the short film, said,'making a film on Mohammad Rafi is like an old dream come true.' Sinha said he had been thinking about making a film on Rafi's life since his death in 1980. He had actually discussed with great music director Naushad about his dream project and the music director had promised to give his full cooperation but due to some unavoidable reasons, he could not make the film at that time.

A biography on the life of yesteryears' Bollywood beauty and Rafi's contemporary Madhubala was also released on the occasion.

'Madhubala: Dard ka safar' is the first biography of Madhubala in Hindi and is written by prestigious Bhartendu Harishchandra award winner Sushila Kumari.

'Madhubala is generally remembered for her matchless beauty and seductive smile but very few people know that her life was full of pain and struggle,'Ms Sushila Kumari said on the occasion.

--UNI (United News of India)

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